Swami Dayanand Saraswati Ji
(1824-1883)
The great Visionary, Missionary and Iconoclast who founded the Arya Samaj
Principles of Arya Samaj
- God is the primary cause of all true knowledge and of everything known by its means.
सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदिमूल परमेश्वर है ।
- He is incorporeal, Almighty, Just, Merciful, Unborn, Infinite, Unchangeable, Beginningless, Incomparable, the Support of all, All-pervading, Omniscient, Omnipotent, Omnipresent, Eternal, Immortal, Fearless, Holy and Creator of the Universe. To Him alone worship is due.
ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्त्ता है । उसी की उपासना करनी योग्य है ।
- The Vedas are the books of true knowledge. It is the paramount duty of every Arya to read, teach, hear and recite them.
वेद सब विद्याओं का पुस्तक है । वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है ।
- All ought to be ready to accept truth and renounce untruth.
सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए ।
- All acts ought to be performed in conformity to Dharma (Virtue and Righteousness).
सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहियें ।
- The primary object of Arya Samaj is to promote welfare of the whole world, i.e. to promote physical, spiritual and social progress of all human beings.
संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना।
- All ought to be treated with love, justice and with due regard to their merits.
सबसे प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिए।
- Ignorance (Avidya) must be dispelled and the knowledge (Vidya-realization and acquisition of true knowledge) should be promoted.
अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए ।
- No one should be contented with his own welfare alone, but every one should regard his or her prosperity in the common welfare of all.
प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिए, किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए ।
- One should subordinate oneself for the common welfare of the society while one is free to act for his/her own welfare.
सब मनुष्यों को सर्वथा विरोध छोड़ कर सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें।